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Tuesday, February 15, 2011


एक छोटा बच्चा जूते के शोरूम के बाहर खड़ा डिस्प्ले में रखे जूतों को देर से निहार रहा था। वहां कई डिजाइनों में झक सफ़ेद से लेकर अलग-अलग रंगों के ढेर सारे जूते रखे थे। वह कभी किसी जूते को देखता, कुछ सोचता, कुछ बुदबुदाता और कभी दूसरे जूतों को।

अचानक एक महिला उसके पास पहुंची। उसकी उम्र 40-45 वर्ष की रही होगी। चेहरे-मोहरे और पहनावे से वह संभ्रांत परिवार की लग रही थी। बच्चे को ध्यान ही नहीं था कि कोई उसके पास खड़ा है, लेकिन जब महिला ने उसके सिर पर हाथ फेरा, तो उसने चौंककर देखा। महिला ने पूछा, ‘तुम इतने ग़ौर से क्या देख रहे हो?’ बच्चे के मन में जो था, उसने साफ़-साफ़ बता दिया, ‘मैं भगवान को मना रहा था कि काश! वह एक जोड़ी जूते मुझे दिला दे।’

उसकी बात सुनकर महिला मुस्कराई और उसका हाथ पकड़कर शोरूम के भीतर ले गई। वहां उसने बच्चे के माप के 10 जोड़ी मोजे निकालने का आदेश दिया। बच्चे को बड़ा आश्चर्य हो रहा था। फिर उस महिला ने दुकानदार से पानी भरी बाल्टी और तौलिया मांगा। उसके बाद वह बच्चे को लेकर दुकान के पीछे ले गई और साबुन-पानी से उसके पैर अच्छी तरह साफ़ किए। फिर उन्हें तौलिए से सुखाया।

इसके बाद उसने अपने हाथों से बच्चे को मोजे पहनाए और बाक़ी मोजे उसके झोले में डाल दिए। फिर वह उसे लेकर डिस्प्ले में गई और पूछा कि वह किस जूते के लिए कह रहा था। बच्चे ने जिस जूते की ओर इशारा किया, उसने निकलवाकर ख़ुद उसे पहनाया और उसके चेहरे की ओर देखने लगी। हैरान बच्चे ने उससे पूछा, ‘क्या आप भगवान की पत्नी हैं?’

1 comment:

  1. बहुत बढ़िया संस्मरण लगा ...लिखते रहिये ..हार्दिक शुभकामना

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