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Monday, February 14, 2011

कोई आँखों आँखों में बात कर लेता है
कोई आँखों आँखों में मुलाक़ात कर लेता है
मुश्किल होता है जॅवाब देना
जब कोई चुप रह कर भी सवाल कर देता है।



युँ तो बहुत कुछ है पास मेरे फिर भी कुछ कमी सी है
घिंरा हूँ चारो तरफ़ मुस्कुराते चेहरो से
फिर भी जिन्दगी में उजाले भरने वाली उस मुस्कुराहट की कमी सी है
दिख रही है पहचान अपनी ओर उठते हर नज़र में....
फिर भी द िल को छु लेने वालि उस निगाह की कमी सी है
गुँज़ता है हर दिन नये किस्सो, कोलाहल और ठहाको से
फ िर भी कानो में गुनगुनाति उस खामोशी कि कमी सी है
बढ़ रहे है कदम मेरे पाने को नयी मन्ज़िलें
फि र भी इन हाथो से छुट चुके उन नरम हाथो की कमी सी है


क्यूं कहते हो मेरे साथ कुछ भी बेह तर नही होता
सच ये है के जैसा चाहो वैसा नही होता
कोई सह लेता है कोई कह लेता है क्यूँकी ग़म कभी ज़िंदगी से बढ़ कर नही होता
आज अपनो ने ही सीखा दिया हमे
यहाँ ठोकर देने वाला हैर पत् थर न ही होता

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